मैंने किताबों में पढ़ा है, ऐतिहासिक टीवी धारावाहिकों और फिल्मों में देखा है कि प्राचीन समय में बच्चों को उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था। वहां उन्हें जीवन कौशल सिखाया जाता था जैसे कि जानवरों की देखभाल, खेती, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करना, भोजन पकाना और इसके अलावा वेद और उपनिषद आदि पढ़ाया जाता था। यह वास्तव में बहुत अच्छा था क्योंकि यह बच्चों के जीवन के मूल्यों और जीवित रहने के कौशल भी सिखा रहा था। जब विदेशी ताकतों ने हमारे देश पर आक्रमण किया तो उन्होंने पाया कि भारतीयों का गुरुकुल शिक्षा प्रणाली बहुत कुशल है और मानव को वास्तव में योग्य बनाती है। लेकिन वे भारत पर शासन करना चाहते थे और वह भी लंबे समय तक। उन्होंने महसूस किया कि अच्छी तरह से शिक्षित भारतीय उनके विदेशी धुन पर नृत्य नहीं करेंगे। इसलिए उन्होंने उस प्राचीन और कुशल शिक्षा प्रणाली को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया और ऐसी प्रणाली की स्थापना की जो उनके विभिन्न महत्वहीन पदों पर मजदूरों के रूप में काम करने के लिए केवल श्रमिक पैदा करती है।
यह लगभग वैसा ही है जैसा पाश्चात्य सभ्यता ने हमारे मूलतः बहुत कुशल और जैविक खेती प्रणाली के साथ किया था। वे रासायनिक उर्वरकों को लाए, खेतों में उपयोग किया और उससे वास्तव में शुरू में आश्चर्यजनक फसल का उत्पादन हुआ। इसने किसानों को पारंपरिक खेती के तरीकों को छोड़ने और रासायनिक उर्वरकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया, जो धीरे-धीरे खेत की जमीन से जीवन अथवा उर्वरता को चूस लिए। अब हालत ऐसा है के यदि कोई रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करता है तो फसल अच्छी नहीं होती। और इस तरह से उगाया गया अनाज से बना भोजन हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।
अब शिक्षा प्रणाली पर वापस आते हैं, हमारे पास अभी भी वही शिक्षा प्रणाली है जिसे विदेशियों ने अपने लाभ के लिए यहां लागू किया था। अब वे यहां शासन नहीं कर रहे हैं, लेकिन शिक्षा प्रणाली के नाम पर उन्होंने जो बीज बोया था, वह अभी भी उनकी कंपनियों के लिए बंधुआ मजदूर पैदा कर रहा है। मैं मानता हूं कि कुछ ऐसे भी हैं जो यहां पैदा हुए हैं और दुनिया पर राज कर रहे हैं, लेकिन वे अल्पसंख्यक हैं। यहां के अधिकांश लोग स्कूलों में 12 साल सिर्फ रट्टा मारके नंबर हासिल करने में बिताते हैं, माता-पिता अपनी लगभग पूरी कमाई निजी स्कूलों को फी के आकार में भुगतान करने में लगा देते हैं। पढ़ाई ख़तम करके ये लोग डॉक्टर या इंजीनियर बन जाते हैं; डॉक्टरों के पास कम से कम अपना खुद का प्राइवेट प्रैक्टिस करने का मौका होता है, लेकिन इंजीनियरों के पास शायद ही कोई विकल्प होता है। और क्योंकि उन्होंने इंजीनियर बनने के लिए अध्ययन किया, वह उसके अलावा और कोई काम करना पसंद नहीं करते और अपनी पूरी ज़िन्दगी MNC कम्पनिओं में नौकरी करते हुए गुज़ारते हैं।
अब MNC कंपनी में काम करना कोई बुरी बात नहीं है, उसके अपने फायदे भी हैं, कमाई भी अच्छी होती है, लेकिन आजकल की माहौल अगर देखें तो किसी भी MNC में १० साल काम करने के बाद अपनी जगह बनाये रखना बहुत ही मुश्किल होता है जो हर किसी से नहीं हो पाता।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या कहता है, मेरा मानना है कि, हमारे देश का विकास और प्रगति वास्तव में तभी दिखाई देगी जब हमारी शिक्षा प्रणाली में बदलाव होगा, सरकारी स्कूलों में शिक्षा का मान निजी स्कूलों के बराबर किया जायेगा। मैं चाहता हूं कि लोग खुशहाल जीवन जियें, जिंदगी भर किसी कंपनी का गुलाम न बनें ना ही अंत में डिप्रेशन में चले जाएं। हमें ये भी सुनिश्चित करना पड़ेगा की हमारे बच्चे सही मायने मैं कुछ शिख रहे हैं, न की सिर्फ नंबर लाने के लिए रट्टा मार रहे हैं। इसके अलावा हम व्यक्तिगत रूप से भी उन्हें कुछ जीवन कौशल सिखाने में निवेश कर सकते हैं; क्या पता उन कौशलों में से एक कल उसका पेशा बन सकता है। मेरा कहना ये है की बच्चों को नौकरी करने के उद्देश्य से न पढ़ाएं। उन्हें ज्ञान अर्जन कराएं ताकि वो बड़े हो कर सैकड़ों लोगों के लिए रोजगार जुटाने के लायक बनें। सभी नौकरी करेंगे तो खाने का अनाज कहाँ से आएगा? आप का बच्चा बड़ा होकर एक बड़े फॉर्महॉउस का मालिक बन सकता है, बस उसे उस लायक बनाएं। या फिर वो बिज़नेस कर सकता है, जिससे उसे फ़ायदा होगा और साथ साथ कुछ और लोगों को भी रोज़गार मिलेगा।
Disclaimer: किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरा उद्देश्य नहीं है, मेरे सभी बच्चे भी कल डॉक्टर या इंजीनियर बन सकते हैं। यह बातें सिर्फ वही है जो आज की स्थिति देख कर मेरे दिमाग में आते हैं; यहां तक कि मैं खुद भी एक MNC मजदूर हूँ; इस पेशे ने मुझे बहुत कुछ दिया है, लेकिन इसमें कम्पटीशन इतना ज्यादा है की आप एक दिन चैन की सांस नहीं ले सकते। मुझे अपनी दिल की बात लिखना बहुत पसंद है, क्या पता किसीके काम आ जाये।
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